हे देवता छाया घनघोर अन्धेरा भावार्थः प्रस्तुत भजन में कवि श्री कल्कि भगवान का आवाहन करते हुए करते हुए कह रहे है कि हे प्रभु चारों ओर घोर अंधेरा छाया हुआ है। कलियुग ने अत्याचारों की सब सीमाएं पार कर दी है। अब तो कलियुग को दंड देने अश्व पर चढ खड्ग हाथ में लेकर आ जाइये। अपने भक्तों की पुकार पर तो आप हमेशा आते है। द्रौपदी का चीर आपने बढ़ाया, और उसके सम्मान की रक्षा की, पत्थर बनी अहिल्या का आपने उद्धार किया, मीराबाई के विष के प्याले को अमृत में बदल दिया, सूरदास को ग्वाला बन दर्शन दिये। फिर क्यों आप हमारी पुकार नहीं सुन रहें है। हमें भी अपने दर्शन देकर कृतार्थ कीजिए, और भाग्यवान से महा भाग्यवान बनाइये। हे देवता छाया घनघोर अन्धेरा है तुम बिन दूर सवेरा हे देवता हे देवता उद्धार करो अब मेरा हूँ दीन दुखों ने घेरा हे देवता कलियुग में श्री कल्कि कहलाना होगा खड़ग लिए चढ़ घोड़े अब आना होगा हे देवता द्रुपद सुता की तुमने लाज बचाई तारी अहिल्या और मीरा बाई हे देवता छाया घनघोर अन्धेरा है तुम बिन दूर सवेरा हे देवता............ सूरदास को दरश दिया गोकुल का ग्वाला बन के मेरी आँखो के आगे भी आओ उजाला बन के हे देवता छाया घनघोर अन्धेरा है तुम बिन दूर सवेरा हे देवत..............."