श्री कृष्ण कन्हैया आ जाओ भावार्थः प्रस्तुत भजन में लेखक श्री कृष्ण के दिव्य क्रीट कुंडल एवं केयूर बाजूबंद और कौस्तुभ मणि (दोनों समुद्र मंथन से प्राप्त) की जगमग से सुशोभित दिव्य रूप को अब श्री कल्कि रूप में देखने की इच्छा प्रगट कर रहे हैं कि हे प्रभु श्री कल्कि अब देर न करो अश्व पर सवार होकर गुरू बाल मुकुंद जी के संग हमें दर्शन देने आ जाओ। श्री कृष्ण कन्हैया आ जाओ कल्कि रूप में बल दाऊ जी के भैया आ जाओ कल्कि रूप में नैन बड़े बेचैन रहें दिन रैन दरश के प्यासे नीरस जीवन तुम बिन भगवान ऊबा मन दुनिया से दुख हर लो और सुख बरसाओ कल्कि रूप में ॥1॥ अश्व सवारी खड्ग हाथ गुरु बालमुकुन्द जी संग में कुंडल क्रीट दमकते जग मग, आभूषण अंग-अंग में सज के संत सुजन मन हर्षाओ कल्कि रूप में ॥2॥"