वैकुंठ धाम वासी धरती तुम्हें पुकारे वैकुंठ धाम वासी धरती तुम्हें पुकारे है कौन जो कि तुम बिन इस भार को उतारे तुम चर-अचर जगत के करतार हो कहाते जब-जब अधर्म बढ़ता अवतार लेके आते इस बार कल्कि बन के क्यूँ ना असुर हारे वैकुंठ धाम वासी धरती तुम्हें पुकारे ॥ 1 ॥ है पाप छल कपट का छाया यहाँ अन्धेरा भगवान कब करोगे तुम सत्य का सवेरा हम आस ले के आये दरबार में तम्हारे वैकुंठ धाम वासी धरती तुम्हें पुकारे ॥ 2 ॥